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ILM शायरी | शाही शायरी

ILM

19 शेर

थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'
दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया

अब्दुल हमीद अदम




अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ
जो समा में आ गया फिर वो ख़ुदा क्यूँकर हुआ

अकबर इलाहाबादी




मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं

from sectarian debate refrained
for I was not so scatter-brained

अकबर इलाहाबादी




अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख

अल्लामा इक़बाल




गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है

go beyond knowledge for its illumination
is the lamp to light the way, not the destination

अल्लामा इक़बाल




इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं

अल्लामा इक़बाल




निकल जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है

अल्लामा इक़बाल