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दीदार शायरी | शाही शायरी

दीदार

27 शेर

मेरी आँखें और दीदार आप का
या क़यामत आ गई या ख़्वाब है

आसी ग़ाज़ीपुरी




तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता
ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं

अहमद फ़राज़




हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं

अमीर मीनाई




वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं
मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी की निगाह में

अमीर मीनाई




जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती

अनवर शऊर




देखने के लिए सारा आलम भी कम
चाहने के लिए एक चेहरा बहुत

असअ'द बदायुनी




मैं कामयाब-ए-दीद भी महरूम-ए-दीद भी
जल्वों के इज़दिहाम ने हैराँ बना दिया

असग़र गोंडवी