जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोए
हम तो आँखों की हर इक हद से गुज़र कर रोए
त्रिपुरारि
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जब से गुज़रा है किसी हुस्न के बाज़ार से दिल
दिल को महसूस ये होता है कि बाज़ार हूँ मैं
त्रिपुरारि
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एक तस्वीर बनाई है ख़यालों ने अभी
और तस्वीर से इक शख़्स निकल आया है
त्रिपुरारि
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एक किरदार नया रोज़ जिया करता हूँ
मुझ को शाएर न कहो एक अदाकार हूँ मैं
त्रिपुरारि
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