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राम अवतार गुप्ता मुज़्तर शायरी | शाही शायरी

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर शेर

15 शेर

बे-दीन हुए ईमान दिया हम इश्क़ में सब कुछ खो बैठे
और जिन को समझते थे अपना वो और किसी के हो बैठे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर




देख लिया क्या जाने शाम की सूनी आँखों में
झील में सूरज अपनी सारी लाली डाल गया

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर




दिल का सुकून रिज़्क़ के हंगामे खा गए
सुख आदमी का चंद निवालों ने डस लिया

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर




दुनिया तेरे नाम से मुझ को पहचाने
इश्क़ में ऐसा रुस्वा कर दे या-अल्लाह

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर




जो छू लूँ आसमाँ पाँव की धरती खींच लेता है
वो मुझ को क्यूँ मिरे क़द से बड़ा होने नहीं देता

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर




लम्हा लम्हा बिखर रहा हूँ मैं
अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर




मैं कैसे तय करूँ बे-सम्त रास्तों का सफ़र
कहाँ है शहर-ए-तमन्ना कोई पता तो दे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर




न आए मेरे होंटों तक जो पैमाना नहीं आता
मिरी ख़ुद्दारियों को हाथ फैलाना नहीं आता

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर




नामूस-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-इंसाँ में ढाल कर
सूती है रात जाम से सूरज निकाल कर

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर