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रईस फ़रोग़ शायरी | शाही शायरी

रईस फ़रोग़ शेर

9 शेर

आएगा मेरे बाद 'फ़रोग़' इन का ज़माना
जिस दौर का मैं हूँ मिरे अशआर नहीं हैं

रईस फ़रोग़




अपने हालात से मैं सुल्ह तो कर लूँ लेकिन
मुझ में रू-पोश जो इक शख़्स है मर जाएगा

रईस फ़रोग़




फ़स्ल तुम्हारी अच्छी होगी जाओ हमारे कहने से
अपने गाँव की हर गोरी को नई चुनरिया ला देना

रईस फ़रोग़




हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है
आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते

रईस फ़रोग़




इक यही दुनिया बदलती है 'फ़रोग़'
कैसी कैसी अजनबी दुनियाओं में

रईस फ़रोग़




इश्क़ वो कार-ए-मुसलसल है कि हम अपने लिए
एक लम्हा भी पस-अंदाज़ नहीं कर सकते

रईस फ़रोग़




लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं

रईस फ़रोग़




मैं ने कितने रस्ते बदले लेकिन हर रस्ते में 'फ़रोग़'
एक अंधेरा साथ रहा है रौशनियों के हुजूम लिए

रईस फ़रोग़




मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप
वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं

रईस फ़रोग़