मेरी ख़ामोशियों के आलम में
गूँज उठती है आप की आवाज़
महेश चंद्र नक़्श
अग़्यार का शिकवा नहीं इस अहद-ए-हवस में
इक उम्र के यारों ने भी दिल तोड़ दिया है
महेश चंद्र नक़्श
ख़ुद-शनासी थी जुस्तुजू तेरी
तुझ को ढूँडा तो आप को पाया
महेश चंद्र नक़्श
कौन समझे हम पे क्या गुज़री है 'नक़्श'
दिल लरज़ उठता है ज़िक्र-ए-शाम से
महेश चंद्र नक़्श
इस डूबते सूरज से तो उम्मीद ही क्या थी
हँस हँस के सितारों ने भी दिल तोड़ दिया है
महेश चंद्र नक़्श
हाल कह देते हैं नाज़ुक से इशारे अक्सर
कितनी ख़ामोश निगाहों की ज़बाँ होती है
महेश चंद्र नक़्श
डूबने वाले मौज-ए-तूफ़ाँ से
जाने क्या बात करते जाते हैं
महेश चंद्र नक़्श
दुनिया से हट के इक नई दुनिया बना सकें
कुछ अहल-ए-आरज़ू इसी हसरत में मर गए
महेश चंद्र नक़्श
बहुत दुश्वार थी राह-ए-मोहब्बत
हमारा साथ देते हम-सफ़र क्या
महेश चंद्र नक़्श