ग़रीबी काटना आसाँ नहीं है
वो सारी उम्र पत्थर काटता है
खुर्शीद अकबर
आते आते आएगी दुनिया-दारी
जाते जाते फ़ाक़ा-मस्ती जाएगी
खुर्शीद अकबर
दुनिया को रौंदने का हुनर जानता हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ कि दुनिया के बा'द क्या
खुर्शीद अकबर
दिल है कि तिरे पाँव से पाज़ेब गिरी है
सुनता हूँ बहुत देर से झंकार कहीं की
खुर्शीद अकबर
दर्द का ज़ाइक़ा बताऊँ क्या
ये इलाक़ा ज़बाँ से बाहर है
खुर्शीद अकबर
दलीलें छीन कर मेरे लबों से
वो मुझ को मुझ से बेहतर काटता है
खुर्शीद अकबर
चेहरे हैं कि सौ रंग में होते हैं नुमायाँ
आईने मगर कोई सियासत नहीं करते
खुर्शीद अकबर
बदन में साँस लेता है समुंदर
मिरी कश्ती हवा पर चल रही है
खुर्शीद अकबर
बड़ी भोली है ख़र्चीली ज़रूरत
शहंशाही कमाई माँगती है
खुर्शीद अकबर