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फ़े सीन एजाज़ शायरी | शाही शायरी

फ़े सीन एजाज़ शेर

12 शेर

अब के रूठे तो मनाने नहीं आया कोई
बात बढ़ जाए तो हो जाती है कम आप ही आप

फ़े सीन एजाज़




अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है
दूसरी औरत पहली जैसी कब होती है

फ़े सीन एजाज़




हज़ारों साल की थी आग मुझ में
रगड़ने तक मैं इक पत्थर रहा था

फ़े सीन एजाज़




इश्क़ किया तो अपनी ही नादानी थी
वर्ना दुनिया जान की दुश्मन कब होती है

फ़े सीन एजाज़




जो मरा है हादसे में मिरा उस से क्या था रिश्ता
ये सड़क जो ख़ूँ में तर है मुझे क्यूँ पुकारती है

फ़े सीन एजाज़




कैसे आता है दबे पाँव गुनाहों का ख़याल
कितनी ख़ामोशी से दरवाज़ा खुला था पहले

फ़े सीन एजाज़




किस अनमोल पशेमानी की दौलत है इन आँखों में
पलकों पर दो आँसू झमकें मोती के से दाने दो

फ़े सीन एजाज़




कोई तो ज़िद में ये आ कर कभी कहे हम से
ये बात यूँ नहीं ऐसे थी यूँ हुआ होगा

फ़े सीन एजाज़




मैं कहाँ आया हूँ लाए हैं तिरी महफ़िल में
मिरी वहशत मिरे मजबूर क़दम आप ही आप

फ़े सीन एजाज़