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बासिर सुल्तान काज़मी शायरी | शाही शायरी

बासिर सुल्तान काज़मी शेर

14 शेर

अब दिल को समझाए कौन
बात अगरचे है माक़ूल

बासिर सुल्तान काज़मी




अपनी बातों के ज़माने तो हवा-बुर्द हुए
अब किया करते हैं हम सूरत-ए-हालात पे बात

बासिर सुल्तान काज़मी




बढ़ गई तुझ से मिल के तन्हाई
रूह जूया-ए-हम-सुबू थी बहुत

बासिर सुल्तान काज़मी




'बासिर' तुम्हें यहाँ का अभी तजरबा नहीं
बीमार हो? पड़े रहो, मर भी गए तो क्या

बासिर सुल्तान काज़मी




चमकी थी एक बर्क़ सी फूलों के आस-पास
फिर क्या हुआ चमन में मुझे कुछ ख़बर नहीं

बासिर सुल्तान काज़मी




दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
फूल को खिलने से मतलब है चमन कोई भी हो

बासिर सुल्तान काज़मी




गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह

बासिर सुल्तान काज़मी




जब भी मिले हम उन से उन्हों ने यही कहा
बस आज आने वाले थे हम आप की तरफ़

बासिर सुल्तान काज़मी




कैसे याद रही तुझ को
मेरी इक छोटी सी भूल

बासिर सुल्तान काज़मी