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अनवर साबरी शायरी | शाही शायरी

अनवर साबरी शेर

33 शेर

जफ़ा ओ जौर-ए-मुसलसल वफ़ा ओ ज़ब्त-ए-अलम
वो इख़्तियार तुम्हें है ये इख़्तियार मुझे

अनवर साबरी




आदमियत के सिवा जिस का कोई मक़्सद न हो
उम्र भर उस आदमी की जुस्तुजू करते रहो

अनवर साबरी




इश्क़ की आग ऐ मआज़-अल्लाह
न कभी दब सकी दबाने से

अनवर साबरी




हासिल-ए-ग़म यही समझते हैं
मौत को ज़िंदगी समझते हैं

अनवर साबरी




दे कर नवेद-ए-नग़्मा-ए-ग़म साज़-ए-इश्क़ को
टूटे हुए दिलों की सदा हो गए हो तुम

अनवर साबरी




दे कर नवेद-ए-नग़्मा-ए-ग़म साज़-ए-इश्क़ को
टूटे हुए दिलों की सदा हो गए हो तुम

अनवर साबरी




अता-ए-ग़म पे भी ख़ुश हूँ मिरी ख़ुशी क्या है
रज़ा तलब जो नहीं है वो बंदगी क्या है

अनवर साबरी




अल्लाह अल्लाह ये फ़ज़ा-ए-दुश्मन-ए-मेहर-ओ-वफ़ा
आश्ना के नाम से होता है बरहम आश्ना

अनवर साबरी




आया है कोई पुर्सिश-ए-अहवाल के लिए
पेश आँसुओं की आप भी सौग़ात कीजिए

अनवर साबरी