तेरी ख़ुशबू तिरा पैकर है मिरे शेरों में
जान यूँही नहीं ये तर्ज़-ए-मिसाली मेरा
अमीर हम्ज़ा साक़िब
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तुम्हारी ज़ात हवाला है सुर्ख़-रूई का
तुम्हारे ज़िक्र को सब शर्त-ए-फ़न बनाते हैं
अमीर हम्ज़ा साक़िब
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तू आया लौट आया है गुज़रे दिनों का नूर
चेहरों पे अपने वर्ना तो बरसों का ज़ंग था
अमीर हम्ज़ा साक़िब
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ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की
नए लिबास भी अब तो पुराने लगते हैं
अमीर हम्ज़ा साक़िब
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