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आग़ा हज्जू शरफ़ शायरी | शाही शायरी

आग़ा हज्जू शरफ़ शेर

25 शेर

इश्क़-बाज़ों की कहीं दुनिया में शुनवाई नहीं
इन ग़रीबों की क़यामत में समाअत हो तो हो

आग़ा हज्जू शरफ़




आमद आमद है तिरे शहर में किस वहशी की
बंद रहने की जो ताकीद है बाज़ारों को

आग़ा हज्जू शरफ़




हमेशा शेफ़्ता रखते हैं अपने हुस्न-ए-क़ुदरत का
ख़ुद उस की रूह हो जाते हैं जिस का तन बनाते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़




घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई
आधी छुटने की हुई तदबीर आधी रह गई

आग़ा हज्जू शरफ़




दुनिया जो न मैं चंद नफ़स के लिए लेता
जन्नत का इलाक़ा मिरी जागीर में आता

आग़ा हज्जू शरफ़




दुखा देते हो तुम दिल को तो बढ़ जाता है दिल मेरा
ख़ुशी होता हूँ ऐसा मैं कि हँस देता हूँ रिक़्क़त में

आग़ा हज्जू शरफ़




दो वक़्त निकलने लगी लैला की सवारी
दिलचस्प हुआ क़ैस के रहने से बन ऐसा

आग़ा हज्जू शरफ़




दिल में आमद आमद उस पर्दा-नशीं की जब सुनी
दम को जल्दी जल्दी मैं ने जिस्म से बाहर किया

आग़ा हज्जू शरफ़




देखने भी जो वो जाते हैं किसी घायल को
इक नमक-दाँ में नमक पीस के भर लेते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़