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वतन में वापसी | शाही शायरी
watan mein wapsi

नज़्म

वतन में वापसी

मुनीर नियाज़ी

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कल वो मिली जो बचपन में मेरे भाई से खेला करती थी
जाने तब क्या बात थी उस में मुझ से बहुत ही डरती थी

पर क्या हुआ? वो कहाँ गई? अब कौन ये बातें जानता है
कब इतनी दूरी से कोई शक्लों को पहचानता है

लेकिन अब जो मिली है मुझ से ऐसा कभी न देखा था
उस को इतनी चाह थी मेरी मैं ने कभी न सोचा था

नाम भी उस ने बच्चे का मेरे ही नाम पे रक्खा था
फिर कहीं उस से बिछड़ न जाऊँ ऐसे मुझ को तकती थी

कोई गहरी बात थी जी में जिसे वो कह भी न सकती थी
ऐसी चुप और पागल आँखें दमक रही थीं शिद्दत से

मैं तो सच-मुच डरने लगा था इस ख़ामोश मोहब्बत से