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सुरुद-ए-शबाना | शाही शायरी
surud-e-shabana

नज़्म

सुरुद-ए-शबाना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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नीम-शब चाँद ख़ुद-फ़रामोशी
महफ़िल-ए-हस्त-ओ-बूद वीराँ है

पैकर-ए-इल्तिजा है ख़ामोशी
बज़्म-ए-अंजुम फ़सुर्दा-सामाँ है

आबशार-ए-सुकूत जारी है
चार-सू बे-ख़ुदी सी तारी है

ज़िंदगी जुज़व-ए-ख़्वाब है गोया
सारी दुनिया सराब है गोया

सो रही है घने दरख़्तों पर!
चाँदनी की थकी हुई आवाज़

कहकशाँ नीम-वा निगाहों से
कह रही है हदीस-ए-शौक़-ए-नियाज़

साज़-ए-दिल के ख़मोश तारों से
छन रहा है ख़ुमार-ए-कैफ़-आगीं

आरज़ू ख़्वाब तेरा रू-ए-हसीं