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साए की ख़ामोशी | शाही शायरी
sae ki KHamoshi

नज़्म

साए की ख़ामोशी

सारा शगुफ़्ता

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साए की ख़ामोशी सिर्फ़ ज़मीन सहती है
खोखला पेड़ नहीं या खोखली हँसी नहीं

और फिर अंजान अपनी अनजानी हँसी में हँसा
क़हक़हे का पत्थर संग-रेज़ों में तक़्सीम हो गया

साए की ख़ामोशी
और फूल नहीं सहते

तुम
समुंदर को लहरों में तरतीब मत दो

कि तुम ख़ुद अपनी तरतीब नहीं जानते
तुम

ज़मीन पे चलना क्या जानो
कि बुत के दिल में तुम्हें धड़कना नहीं आता