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ना-काम कोशिश | शाही शायरी
na-kaam koshish

नज़्म

ना-काम कोशिश

अब्दुल अहद साज़

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अहमक़ क़ुमक़ुमो! बेवक़ूफ़ मशीनो!
तुम सब शायद सोचते होगे

अपनी तेज़ चका-चौंद रौशनी से
अपनी घड़-घड़ाहट से धमक से

मेरे अंदर किसी को
बेहाल करोगे ख़ौफ़-ज़दा कर दोगे!

उँह बे-कार न इतराओ
मेरे अंदर का कोई

कब का सो चुका
अब तो सोते में झुरझुरी भी नहीं लेता

अब तो केवल मैं हूँ
तुम सा तुम्हारे जैसा ''मैं''!