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मशीन | शाही शायरी
machine

नज़्म

मशीन

निदा फ़ाज़ली

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मशीन चल रही हैं
नीले पीले लाल लोहे की मशीनों में

हज़ारों आहनी पुर्ज़े
मुक़र्रर हरकतों के दाएरों में

चलते फिरते हैं
सहर से शाम तक पुर-शोर आवाज़ें उगलते हैं

बड़ा छोटा हर इक पुर्ज़ा
कसा है कील-पंचों से

हज़ारों घूमते पुर्ज़ों को अपने पेट में डाले
मशीनें सोचती हैं

चीख़ती हैं
जंग करती हैं

मशीनें चल रही हैं