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जिब्रईल ओ इबलीस | शाही शायरी
jibrail o iblis

नज़्म

जिब्रईल ओ इबलीस

अल्लामा इक़बाल

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जिब्रईल
हम-दम-ए-दैरीना कैसा है जहान-ए-रंग-ओ-बू

इबलीस
सोज़-ओ-साज़ ओ दर्द ओ दाग़ ओ जुस्तुजू ओ आरज़ू

जिब्रईल
हर घड़ी अफ़्लाक पर रहती है तेरी गुफ़्तुगू

क्या नहीं मुमकिन कि तेरा चाक दामन हो रफ़ू
इबलीस

आह ऐ जिबरील तू वाक़िफ़ नहीं इस राज़ से
कर गया सरमस्त मुझ को टूट कर मेरा सुबू

अब यहाँ मेरी गुज़र मुमकिन नहीं मुमकिन नहीं
किस क़दर ख़ामोश है ये आलम-ए-बे-काख़-ओ-कू

जिस की नौमीदी से हो सोज़-ए-दरून-ए-काएनात
उस के हक़ में तक़्नतू अच्छा है या ला-तक़्नतू

जिब्रईल
खो दिए इंकार से तू ने मक़ामात-ए-बुलंद

चश्म-ए-यज़्दाँ में फ़रिश्तों की रही क्या आबरू
इबलीस

है मिरी जुरअत से मुश्त-ए-ख़ाक में ज़ौक़-ए-नुमू
मेरे फ़ित्ने जामा-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद का तार-ओ-पू

देखता है तू फ़क़त साहिल से रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर
कौन तूफ़ाँ के तमांचे खा रहा है मैं कि तू

ख़िज़्र भी बे-दस्त-ओ-पा इल्यास भी बे-दस्त-ओ-पा
मेरे तूफ़ाँ यम-ब-यम दरिया-ब-दरिया जू-ब-जू

गर कभी ख़ल्वत मयस्सर हो तो पूछ अल्लाह से
क़िस्सा-ए-आदम को रंगीं कर गया किस का लहू

मैं खटकता हूँ दिल-ए-यज़्दाँ में काँटे की तरह
तू फ़क़त अल्लाह-हू अल्लाह-हू अल्लाह-हू