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इक शहंशाह ने बनवा के.... | शाही शायरी
ek shahanshah ne banwa ke

नज़्म

इक शहंशाह ने बनवा के....

शकील बदायुनी

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इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है

इस के साए में सदा प्यार के चर्चे होंगे
ख़त्म जो हो न सकेगी वो कहानी दी है

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
ताज वो शम्अ है उल्फ़त के सनम-ख़ाने की

जिस के परवानों में मुफ़्लिस भी हैं ज़रदार भी हैं
संग-ए-मरमर में समाए हुए ख़्वाबों की क़सम

मरहले प्यार के आसाँ भी हैं दुश्वार भी हैं
दिल को इक जोश इरादों को जवानी दी है

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
ताज इक ज़िंदा तसव्वुर है किसी शाएर का

उस का अफ़्साना हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं
इस के आग़ोश में आ कर ये गुमाँ होता है

ज़िंदगी जैसे मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
ताज ने प्यार की मौजों को रवानी दी है

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
ये हसीं रात ये महकी हुई पुर-नूर फ़ज़ा

हो इजाज़त तो ये दिल इश्क़ का इज़हार करे
इश्क़ इंसान को इंसान बना देता है

किस की हिम्मत है मोहब्बत से जो इंकार करे
आज तक़दीर ने ये रात सुहानी दी है

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज महल
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल.....