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ए'तिराफ़ | शाही शायरी
etiraf

नज़्म

ए'तिराफ़

परवीन शाकिर

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जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
हो गई रात तिरे अक्स को तकते तकते

मैं ने फिर तेरे तसव्वुर के किसी लम्हे में
तेरी तस्वीर पे लब रख दिए आहिस्ता से!