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दिलदार देखना | शाही शायरी
dildar dekhna

नज़्म

दिलदार देखना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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तूफ़ाँ ब-दिल है हर कोई दिलदार देखना
गुल हो न जाए मिशअल-ए-रुख़्सार देखना

आतिश ब-जाँ है हर कोई सरकार देखना
लौ दे उठे न तुर्रा-ए-तर्रार देखना

जज़्ब-ए-मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-यार देखना
सर देखना, न संग, न दीवार देखना

कू-ए-जफ़ा में क़हत-ए-ख़रीदार देखना
हम आ गए तो गर्मी-ए-बाज़ार देखना

उस दिल-नवाज़ शहर के अतवार देखना
बे इल्तिफ़ात बोलना, बेज़ार देखना

ख़ाली हैं गरचे मसनद ओ मिम्बर, निगूँ है ख़ल्क़
रोअब-ए-क़बा ओ हैबत-ए-दस्तार देखना

जब तक नसीब था तिरा दीदार देखना
जिस सम्त देखना, गुल-ओ-गुलज़ार देखना

फिर हम तमीज़-ए-रोज़-ओ-मह-ओ-साल कर सकें
ऐ याद-ए-यार फिर इधर इक बार देखना