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ढलान | शाही शायरी
Dhalan

नज़्म

ढलान

अहमद नदीम क़ासमी

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रेत पर सब्त हैं ये किस के क़दम
हुस्न को नर्म-ख़िरामी की क़सम

सर-ए-साहिल मिरी तख़ईल-ए-जवाँ गुज़री है
या कोई अंजुमन-ए-गुल-बदनाँ गुज़री है

मौज ने नक़्श-ए-क़दम चाट लिए
मेरी तख़्ईल के पर काट लिए

लोग दरियाओं के अंजाम से डर जाते हैं
अब तो रस्ते भी समुंदर में उतर जाते हैं