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दयार-ए-ख़्वाब | शाही शायरी
dayar-e-KHwab

नज़्म

दयार-ए-ख़्वाब

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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दयार-ए-ख़्वाब के उधर
मुसाफ़िरों की बस्तियाँ

नशीली काली बदलियाँ शराबियों की टोलियाँ
नशा बढ़ाती धानी धानी चुनरियाँ

महकते कुँवारे जिस्म चिलमनों की तीलियाँ
सजीली रेशमी परों में रंग-बिरंगी तितलियाँ

पकी पकाई औरतों में शहवतों की बिजलियाँ
ज़रा सी रात भीग जाए,

फिर सुनो अंधेरे की ज़बाँ
थके थकाए जिस्म हाँफती लटकती छातियाँ

शफ़ीक़ आँखें माओं की रहीम लोरियाँ
ख़िज़ाँ लुटाती कहकशाँ,

धुआँ उगलती चिमनियाँ
धड़कते दिल, निढाल जिस्म, धूप के मकाँ

सुनहरे सुर्ख़ पैरहन भिगोती शहर-ज़ादियाँ
गदेले गंदे पोखरों में तैरती हैं मछलियाँ

न जाने किस गुनाह की सज़ा में बहती नदियाँ
ज़रा सी रात भीग जाए,

फिर सुनो अंधेरे की ज़बाँ
दयार-ए-ख़्वाब के उधर

मुसाफ़िरों की बस्तियाँ