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बाज़गश्त | शाही शायरी
bazgasht

नज़्म

बाज़गश्त

मुनीर नियाज़ी

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ये सदा
ये सदा-ए-बाज़गश्त

बे-कराँ वुसअ'त की आवारा परी
सुस्त-रौ झीलों के पार

नम-ज़दा पेड़ों के फैले बाज़ुओं के आस-पास
एक ग़म-दीदा परिंद

गीत गाता है मिरी वीरान शामों के लिए