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अपनी याद में | शाही शायरी
apni yaad mein

नज़्म

अपनी याद में

शहरयार

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मैं अपने घाव गिन रहा हूँ
दूर तितलियों के रेशमी परों के नीले पीले रंग

उड़ रहे हैं हर तरफ़
फ़रिश्ते आसमान से उतर रहे हैं सफ़-ब-सफ़

मैं अपने घाव गिन रहा हूँ
आँसुओं की ओस में नहा के भूले-बिसरे ख़्वाब आ गए

ख़ून का दबाव और कम हुआ
नहीफ़ जिस्म पर किसी के नाख़ुनों के आड़े-तिरछे नक़्श

जगमगा उठे
लबों पे लुकनतों की बर्फ़ जम गई

तवील हिचकियों का एक सिलसिला
फ़ज़ा में है

लहू की बू हवा में है