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आज की रात | शाही शायरी
aaj ki raat

नज़्म

आज की रात

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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आज की रात साज़-ए-दर्द न छेड़
दुख से भरपूर दिन तमाम हुए

और कल की ख़बर किसे मालूम
दोश-ओ-फ़र्दा की मिट चुकी हैं हुदूद

हो न हो अब सहर किसे मालूम
ज़िंदगी हेच! लेकिन आज की रात

एज़दिय्यत है मुमकिन आज की रात
आज की रात साज़-ए-दर्द न छेड़

अब न दोहरा फ़साना-हा-ए-अलम
अपनी क़िस्मत पे सोगवार न हो

फ़िक्र-ए-फ़र्दा उतार दे दिल से
उम्र-ए-रफ़्ता पे अश्क-बार न हो

अहद-ए-ग़म की हिकायतें मत पूछ
हो चुकीं सब शिकायतें मत पूछ

आज की रात साज़-ए-दर्द न छेड़