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ज़ुल्फ़ देखी वो धुआँ-धार वो चेहरा देखा | शाही शायरी
zulf dekhi wo dhuan-dhaar wo chehra dekha

ग़ज़ल

ज़ुल्फ़ देखी वो धुआँ-धार वो चेहरा देखा

अहमद मुश्ताक़

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ज़ुल्फ़ देखी वो धुआँ-धार वो चेहरा देखा
सच बता देखने वाले उसे कैसा देखा

रात सारी किसी टूटी हुई कश्ती में कटी
आँख बिस्तर पे खुली ख़्वाब में दरिया देखा

ज़र्द गलियों में खुले सब्ज़ दरीचे जिन में
धूप लिपटी रही और साए को जलता देखा

काले कमरों में कटी सारी जवानी उस की
जिस ने ऐ सुब्ह-ए-मोहब्बत तिरा रस्ता देखा

सुनते रहते थे कि यूँ होगा वो ऐसा होगा
लेकिन उस को तो किसी और तरह का देखा