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ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें | शाही शायरी
zindagi jab bhi teri bazm mein lati hai hamein

ग़ज़ल

ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें

शहरयार

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ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें

सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
दिन ढले यूँ तिरी आवाज़ बुलाती है हमें

याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से
रात के पिछले-पहर रोज़ जगाती है हमें

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें