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ज़ीस्त मिलती है उम्र-ए-फ़ानी से | शाही शायरी
zist milti hai umr-e-fani se

ग़ज़ल

ज़ीस्त मिलती है उम्र-ए-फ़ानी से

नुशूर वाहिदी

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ज़ीस्त मिलती है उम्र-ए-फ़ानी से
माँग कुछ अपनी ज़िंदगानी से

इक नज़र का फ़साना है दुनिया
सौ कहानी है इक कहानी से

बात कह दी तो बात कुछ न रही
ग़म हुआ ग़म की तर्जुमानी से

सुब्ह होती नहीं मोहब्बत की
रात कटती नहीं जवानी से

फूल चुनते हैं अहल-ए-बज़्म 'नुशूर'
मेरी हर ताज़ा गुल-फ़िशानी से