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ज़रा हटे तो वो मेहवर से टूट कर ही रहे | शाही शायरी
zara haTe to wo mehwar se TuT kar hi rahe

ग़ज़ल

ज़रा हटे तो वो मेहवर से टूट कर ही रहे

अली अकबर अब्बास

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ज़रा हटे तो वो मेहवर से टूट कर ही रहे
हवा ने नोचा उन्हें यूँ कि बस बिखर ही रहे

हैं बे-निशाँ जो उड़े थे बगूला-ज़द हो कर
ज़मीं पे लेटने वाले ज़मीन पर ही रहे

बहार झाड़ियों पर टूट टूट कर बरसी
दुआएँ माँगते अश्जार बे-समर ही रहे

ख़ुशा ये साया ओ ख़ुश्बू कि ताइर-ए-ख़ुश-रंग
न फिर ये वक़्त रहे और न ये शजर ही रहे

बनाएँ ऐसा मकाँ अब कि चाँद और सूरज
जिधर भी जाएँ मगर रौशनी इधर ही रहे