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यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है | शाही शायरी
yun lag raha hai jaise koi aas-pas hai

ग़ज़ल

यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है

निदा फ़ाज़ली

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यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है

मुमकिन है लिखने वाले को भी ये ख़बर न हो
क़िस्से में जो नहीं है वही बात ख़ास है

माने न माने कोई हक़ीक़त तो है यही
चर्ख़ा है जिस के पास उसी की कपास है

इतना भी बन-सँवर के न निकला करे कोई
लगता है हर लिबास में वो बे-लिबास है

छोटा बड़ा है पानी ख़ुद अपने हिसाब से
उतनी ही हर नदी है यहाँ जितनी प्यास है