EN اردو
यूँ हाथ नहीं आता वो गौहर-ए-यक-दाना | शाही शायरी
yun hath nahin aata wo gauhar-e-yak-dana

ग़ज़ल

यूँ हाथ नहीं आता वो गौहर-ए-यक-दाना

अल्लामा इक़बाल

;

यूँ हाथ नहीं आता वो गौहर-ए-यक-दाना
यक-रंगी ओ आज़ादी ऐ हिम्मत-ए-मर्दाना

या संजर ओ तुग़रल का आईन-ए-जहाँगीरी
या मर्द-ए-क़लंदर के अंदाज़-ए-मुलूकाना

या हैरत-ए-'फ़राबी' या ताब-ओ-तब-ए-'रूमी'
या फ़िक्र-ए-हकीमाना या जज़्ब-ए-कलीमाना

या अक़्ल की रूबाही या इश्क़-ए-यदुल-लाही
या हीला-ए-अफ़रंगी या हमला-ए-तुरकाना

या शर-ए-मुसलमानी या दैर की दरबानी
या नारा-ए-मस्ताना काबा हो कि बुत-ख़ाना

मीरी में फ़क़ीरी में शाही में ग़ुलामी में
कुछ काम नहीं बनता बे-जुरअत-ए-रिंदाना