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ये जो सूरज है ये सूरज भी कहाँ था पहले | शाही शायरी
ye jo suraj hai ye suraj bhi kahan tha pahle

ग़ज़ल

ये जो सूरज है ये सूरज भी कहाँ था पहले

अफ़ज़ल गौहर राव

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ये जो सूरज है ये सूरज भी कहाँ था पहले
बर्फ़ से उठता हुआ एक धुआँ था पहले

मुझ से आबाद हुई है तिरी दुनिया वर्ना
इस ख़राबे में कोई और कहाँ था पहले

एक ही दाएरे में क़ैद हैं हम लोग यहाँ
अब जहाँ तुम हो कोई और वहाँ था पहले

उस को हम जैसे कई मिल गए मजनूँ वर्ना
इश्क़ लोगों के लिए कार-ए-ज़ियाँ था पहले

ये जो अब रेत नज़र आता है अफ़ज़ल 'गौहर'
इसी दरिया में कभी आब-ए-रवाँ था पहले