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ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब | शाही शायरी
ye huryan-e-farangi dil o nazar ka hijab

ग़ज़ल

ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब

अल्लामा इक़बाल

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ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब
बहिश्त-ए-मग़रबियाँ जल्वा-हा-ए-पा-ब-रिकाब

दिल ओ नज़र का सफ़ीना संभाल कर ले जा
मह ओ सितारा हैं बहर-ए-वजूद में गिर्दाब

जहान-ए-सौत-ओ-सदा में समा नहीं सकती
लतीफ़ा-ए-अज़ली है फ़ुग़ान-ए-चंग-ओ-रबाब

सिखा दिए हैं उसे शेवा-हा-ए-ख़ानक़ही
फ़क़ीह-ए-शहर को सूफ़ी ने कर दिया है ख़राब

वो सज्दा रूह-ए-ज़मीं जिस से काँप जाती थी
उसी को आज तरसते हैं मिम्बर ओ मेहराब

सुनी न मिस्र ओ फ़िलिस्तीं में वो अज़ाँ मैं ने
दिया था जिस ने पहाड़ों को रेशा-ए-सीमाब

हवा-ए-क़ुर्तबा शायद ये है असर तेरा
मिरी नवा में है सोज़-ओ-सुरूर-ए-अहद-ए-शबाब