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वो रंग-ए-तमन्ना है कि सद-रंग हुआ हूँ | शाही शायरी
wo rang-e-tamanna hai ki sad-rang hua hun

ग़ज़ल

वो रंग-ए-तमन्ना है कि सद-रंग हुआ हूँ

अख़्तर होशियारपुरी

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वो रंग-ए-तमन्ना है कि सद-रंग हुआ हूँ
देखो तो नज़र हूँ जो न देखो तो सदा हूँ

या इतना सुबुक था कि हवा ले उड़ी मुझ को
या इतना गिराँ हूँ कि सर-ए-राह पड़ा हूँ

चेहरे पे उजाला था गरेबाँ में सहर थी
वो शख़्स अजब था जिसे रस्ते में मिला हूँ

कब धूप चली शाम ढली किस को ख़बर है
इक उम्र से मैं अपने ही साए में खड़ा हूँ

जब आँधियाँ आई हैं तो मैं निकला न घर से
पत्तों के तआक़ुब में मगर दौड़ पड़ा हूँ