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वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है | शाही शायरी
wahan shayad koi baiTha hua hai

ग़ज़ल

वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है

आदिल रज़ा मंसूरी

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वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है
अभी खिड़की में इक जलता दिया है

मिरा दिल भी अजब ख़ाली विया है
किसी की याद ने जिस को भरा है

परिंदे शाख़ से लिपटे हुए हैं
ये कैसा ख़ौफ़ ख़ेमा-ज़न हुआ है

मिरी ख़ामोशियों की झील में फिर
किसी आवाज़ का पत्थर गिरा है

मोहब्बत का मुक़द्दर देखते हो
हवा ने कुछ तो पानी पर लिखा है

उसी पर खुल रहे हैं सारे मौसम
जो अपने घर से बाहर आ गया है

चराग़ो अब ज़रा अपनी सुनाओ
हवा का काम पूरा हो चुका है

मोहब्बत फिर वहीं ले आई 'आदिल'
ये जंगल बार-हा देखा हुआ है