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उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए | शाही शायरी
utren gahrai mein tab KHak se pani aae

ग़ज़ल

उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए

ज़करिय़ा शाज़

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उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए
सब को ऐ दोस्त कहाँ अश्क-फ़िशानी आए

फाँदनी पड़ गई काँटों से भरी बाड़ हमें
जितने पैग़ाम थे फूलों की ज़बानी आए

बस यही सोच के किरदार निभाते जाओ
जाने किस मोड़ पे अंजाम-ए-कहानी आए

एक मुद्दत मैं ख़मोशी से रहा महव-ए-कलाम
तब कहीं जा के ये लफ़्ज़ों में मआ'नी आए

कहीं धोका ही न हो शौक़ नई मंज़िल का
मेरे हमराह कोई राह पुरानी आए

'शाज़' ख़ुद में ही गँवाए हुए ख़ुद को रखना
हाथ जब तक न कोई अपनी निशानी आए