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उठी फिर दिल में इक मौज-ए-शबाब आहिस्ता आहिस्ता | शाही शायरी
uThi phir dil mein ek mauj-e-shabab aahista aahista

ग़ज़ल

उठी फिर दिल में इक मौज-ए-शबाब आहिस्ता आहिस्ता

शकील बदायुनी

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उठी फिर दिल में इक मौज-ए-शबाब आहिस्ता आहिस्ता
कुछ आया ज़िंदगी में इंक़लाब आहिस्ता आहिस्ता

समा कर मुझ में वो जान-ए-शबाब आहिस्ता आहिस्ता
बना देगा मुझे अपना जवाब आहिस्ता आहिस्ता

ये महफ़िल ज़ाहिदान-ए-ख़ुश्क की महफ़िल है ऐ रिंदो
ज़रा इस बज़्म में ज़िक्र-ए-शराब आहिस्ता आहिस्ता

मिरी नज़रें मुझी को रफ़्ता रफ़्ता भूल जाती हैं
हुए जाते हैं जल्वे कामयाब आहिस्ता आहिस्ता

न कहिए हाँ न कहिए आप को मुझ से मोहब्बत है
निगाहें ख़ुद ही दे देंगी जवाब आहिस्ता आहिस्ता

'शकील' इस दर्जा मायूसी शुरू-ए-इश्क़ में कैसी
अभी तो और होना है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता