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तू आश्ना-ए-जज़्बा-ए-उल्फ़त नहीं रहा | शाही शायरी
tu aashna-e-jazba-e-ulfat nahin raha

ग़ज़ल

तू आश्ना-ए-जज़्बा-ए-उल्फ़त नहीं रहा

नून मीम राशिद

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तू आश्ना-ए-जज़्बा-ए-उल्फ़त नहीं रहा
दिल में तिरे वो ज़ौक़-ए-मोहब्बत नहीं रहा

फिर नग़्मा-हा-ए-क़ुम तो फ़ज़ा में हैं गूँजते
तू ही हरीफ़-ए-ज़ौक़-ए-समाअत नहीं रहा

आईं कहाँ से आँख में आतिश-चिकानियाँ
दिल आश्ना-ए-सोज़-ए-मोहब्बत नहीं रहा

गुल-हा-ए-हुस्न-ए-यार में दामन-कश-ए-नज़र
मैं अब हरीस-ए-गुलशन-ए-जन्नत नहीं रहा

शायद जुनूँ है माइल-ए-फ़र्ज़ानगी मिरा
मैं वो नहीं वो आलम-ए-वहशत नहीं रहा

मम्नून हूँ मैं तेरा बहुत मर्ग-ए-ना-गहाँ
मैं अब असीर-ए-गर्दिश-ए-क़िस्मत नहीं रहा

जल्वागह-ए-ख़याल में वो आ गए हैं आज
लो मैं रहीन-ए-ज़हमत-ए-ख़ल्वत नहीं रहा

क्या फ़ाएदा है दावा-ए-इश्क़-ए-हुसैन से
सर में अगर वो शौक़-ए-शहादत नहीं रहा