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तुम नहीं पास कोई पास नहीं | शाही शायरी
tum nahin pas koi pas nahin

ग़ज़ल

तुम नहीं पास कोई पास नहीं

जिगर बरेलवी

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तुम नहीं पास कोई पास नहीं
अब मुझे ज़िंदगी की आस नहीं

कश्मकश में न रूह पड़ जाए
यूँ तो मरने का कुछ हिरास नहीं

लाला-ओ-गुल बुझा सकें जिस को
इश्क़ की प्यास ऐसी प्यास नहीं

उम्र सी उम्र हो गई बर्बाद
दिल-ए-नादाँ अबस उदास नहीं

साँस लेने में दर्द होता है
अब हवा ज़िंदगी की रास नहीं

राह में अपनी ख़ाक होने दे
और कुछ मेरी इल्तिमास नहीं

क्या बताऊँ मआल-ए-शौक़ 'जिगर'
आह क़ाएम मिरे हवास नहीं