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तुम न मानो मगर हक़ीक़त है | शाही शायरी
tum na mano magar haqiqat hai

ग़ज़ल

तुम न मानो मगर हक़ीक़त है

क़ाबिल अजमेरी

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तुम न मानो मगर हक़ीक़त है
इश्क़ इंसान की ज़रूरत है

जी रहा हूँ इस ए'तिमाद के साथ
ज़िंदगी को मिरी ज़रूरत है

हुस्न ही हुस्न जल्वे ही जल्वे
सिर्फ़ एहसास की ज़रूरत है

उस के वादे पे नाज़ थे क्या क्या
अब दर-ओ-बाम से नदामत है

उस की महफ़िल में बैठ कर देखो
ज़िंदगी कितनी ख़ूब-सूरत है

रास्ता कट ही जाएगा 'क़ाबिल'
शौक़-ए-मंज़िल अगर सलामत है