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तिरे करम से ख़ुदाई में यूँ तो क्या न मिला | शाही शायरी
tere karam se KHudai mein yun to kya na mila

ग़ज़ल

तिरे करम से ख़ुदाई में यूँ तो क्या न मिला

नून मीम राशिद

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तिरे करम से ख़ुदाई में यूँ तो क्या न मिला
मगर जो तू न मिला ज़ीस्त का मज़ा न मिला

हयात-ए-शौक़ की ये गर्मियाँ कहाँ होतीं
ख़ुदा का शुक्र हमें नाला-ए-रसा न मिला

अज़ल से फ़ितरत-ए-आज़ाद ही थी आवारा
ये क्यूँ कहें कि हमें कोई रहनुमा न मिला

ये काएनात किसी का ग़ुबार-ए-राह सही
दलील-ए-राह जो बनता वो नक़्श-ए-पा न मिला

ये दिल शहीद-ए-फ़रेब-निगाह हो न सका
वो लाख हम से ब-अंदाज़-ए-महरमाना मिला

कनार-ए-मौज में मरना तो हम को आता है
निशान-ए-साहिल-ए-उल्फ़त मिला मिला न मिला

तिरी तलाश ही थी माया-ए-बक़ा-ए-वजूद
बला से हम को सर-ए-मंज़िल-ए-बक़ा न मिला