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तेरे प्यार में रुस्वा हो कर जाएँ कहाँ दीवाने लोग | शाही शायरी
tere pyar mein ruswa ho kar jaen kahan diwane log

ग़ज़ल

तेरे प्यार में रुस्वा हो कर जाएँ कहाँ दीवाने लोग

उबैदुल्लाह अलीम

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तेरे प्यार में रुस्वा हो कर जाएँ कहाँ दीवाने लोग
जाने क्या क्या पूछ रहे हैं ये जाने-पहचाने लोग

हर लम्हा एहसास की सहबा रूह में ढलती जाती है
ज़ीस्त का नश्शा कुछ कम हो तो हो आएँ मय-ख़ाने लोग

जैसे तुम्हें हम ने चाहा है कौन भला यूँ चाहेगा
माना और बहुत आएँगे तुम से प्यार जताने लोग

यूँ गलियों बाज़ारों में आवारा फिरते रहते हैं
जैसे इस दुनिया में सभी आए हों उम्र गँवाने लोग

आगे पीछे दाएँ बाएँ साए से लहराते हैं
दुनिया भी तो दश्त-ए-बला है हम ही नहीं दीवाने लोग

कैसे दुखों के मौसम आए कैसी आग लगी यारो
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नज़राने लोग

कल मातम बे-क़ीमत होगा आज उन की तौक़ीर करो
देखो ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़्साने लोग