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ताब-ए-दिल सर्फ़-ए-जुदाई हो चुकी | शाही शायरी
tab-e-dil sarf-e-judai ho chuki

ग़ज़ल

ताब-ए-दिल सर्फ़-ए-जुदाई हो चुकी

मीर तक़ी मीर

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ताब-ए-दिल सर्फ़-ए-जुदाई हो चुकी
यानी ताक़त आज़माई हो चुकी

छूटता कब है असीर-ए-ख़ुश-ज़बाँ
जीते जी अपनी रिहाई हो चुकी

आगे हो मस्जिद के निकली उस की राह
शैख़ से अब पारसाई हो चुकी

दरमियाँ ऐसा नहीं अब आईना
मेरे उस के अब सफ़ाई हो चुकी

एक बोसा माँगते लड़ने लगे
इतने ही में आश्नाई हो चुकी

बीच में हम ही न हों तो लुत्फ़ क्या
रहम कर अब बेवफ़ाई हो चुकी

आज फिर था बे-हमीयत 'मीर' वाँ
कल लड़ाई सी लड़ाई हो चुकी