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शिकस्त-ए-शौक़ को तकमील-ए-आरज़ू कहिए | शाही शायरी
shaikast-e-shauq ko takmil-e-arzu kahiye

ग़ज़ल

शिकस्त-ए-शौक़ को तकमील-ए-आरज़ू कहिए

अली सरदार जाफ़री

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शिकस्त-ए-शौक़ को तकमील-ए-आरज़ू कहिए
जो तिश्नगी हो तो पैमाना-ओ-सुबू कहिए

ख़याल-ए-यार को दीजिए विसाल-ए-यार का नाम
शब-ए-फ़िराक़ को गैसू-ए-मुश्क-बू कहिए

चराग़-ए-अंजुमन-ए-हैरत-ए-नज़ारा थे
वो लाला-रू जिन्हें अब दाग़-ए-आरज़ू कहिए

महक रही है ग़ज़ल ज़िक्र-ए-ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ से
नसीम-ए-सुब्ह की मानिंद कू-ब-कू कहिए

शिकायतें भी बहुत हैं हिकायतें भी बहुत
मज़ा तो जब है कि यारों के रू-ब-रू कहिए

ब-हुक्म कीजिए फिर ख़ंजरों की दिलदारी
दहान-ए-ज़ख़्म से अफ़्साना-ए-गुलू कहिए