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सहमा सहमा डरा सा रहता है | शाही शायरी
sahma sahma Dara sa rahta hai

ग़ज़ल

सहमा सहमा डरा सा रहता है

गुलज़ार

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सहमा सहमा डरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है

काई सी जम गई है आँखों पर
सारा मंज़र हरा सा रहता है

एक पल देख लूँ तो उठता हूँ
जल गया घर ज़रा सा रहता है

सर में जुम्बिश ख़याल की भी नहीं
ज़ानुओं पर धरा सा रहता है