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रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है | शाही शायरी
rang jin ke miT gae hain un mein yar aane ko hai

ग़ज़ल

रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है

आग़ा हज्जू शरफ़

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रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है
धूम है पज़मुर्दा फूलों में बहार आने को है

यार कूचे में तिरे धूनी रमाने के लिए
ग़म-ज़दा हसरत-ज़दा इक ख़ाकसार आने को है

रहम करना अब की मेरी आँख खुलने की नहीं
आख़िरी ग़श मुझ को ऐ पर्वरदिगार आने को है

कोई दम में हश्र होगा कुछ ख़बर भी है तुम्हें
बे-क़रारी लाती है इक बे-क़रार आने को है

भागे जाते हैं बगूले काँपता है नज्द-ए-क़ैस
ख़ाक उड़ी किस की यहाँ किस का ग़ुबार आने को है

होश उड़े जाते हैं यारो रूह है सहमी हुई
सैद-गाह-ए-इश्क़ से किस का शिकार आने को है

जान-ए-जाँ तू कीजो जाँ-बख़्शी कि तुझ को देखने
एक बे-कस बे-ख़ुद ओ बे-इख़्तियार आने को है

दर्द-ए-तन्हाई से छुड़ाता है आलम नज़'अ का
बे-क़रारी कूच करती है क़रार आने को है

गुल-रुख़ों की बज़्म में जाने को है मेरा ग़ुबार
पेशवाई के लिए अब्र-ए-बहार आने को है

अब मिरी आँखों को होगा वलवला दीदार का
हसरत इन में आ चुकी है इंतिज़ार आने को है

होगी अब आरास्ता तुर्बत शहीद-ए-नाज़ की
चादर-ए-गुल बिछती है शम-ए-मज़ार आने को है

बे-वफ़ा तुम बा-वफ़ा मैं देखिए होता है क्या
ग़ैज़ में आने को तुम हो मुझ को प्यार आने को है

ग़ुंचा-ओ-गुल कर रही हैं क्यूँ गरेबाँ चाक चाक
कौन से रश्क-ए-चमन का दिल-फ़िगार आने को है

हिज्र में दम घुटने को है कूच है तफ़रीह का
साँस रुकने को है हिचकी चंद बार आने को है

बैठी है लैला गरेबाँ फाड़ने के वास्ते
किस के मजनूँ का लिबास-ए-तार-तार आने को है

ग़श से चौंको आँख खोलो दम न तोड़ो ऐ 'शरफ़'
शुक्र का सज्दा करो उठ बैठो यार आने को है