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रात आँसू को तिरी आँख में देखा हम ने | शाही शायरी
raat aansu ko teri aankh mein dekha humne

ग़ज़ल

रात आँसू को तिरी आँख में देखा हम ने

ज़काउद्दीन शायाँ

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रात आँसू को तिरी आँख में देखा हम ने
रख दिया तोड़ के जैसे कोई तारा हम ने

गुम-शुदा जिस्म मिले हल्क़ा-ए-बाज़ू जागे
शाम से ओढ़ लिया आज सवेरा हम ने

ग़म में ख़ुश रहते हैं हर साया-ए-क़ुर्बत से दूर
अब बदल डाला मिज़ाज अहल-ए-वफ़ा का हम ने

ओस में महकी हुई रात के पोंछे आँसू
सुब्ह को दे दिया हँसता हुआ चेहरा हम ने

ख़त्म ख़ुश-फहमी-ए-सैराबी हुई होंटों तक
आँख से देखा है प्यासा कोई दरिया हम ने

चख लिया जज़्बा-ए-वारफ़्ता ने इक रंग-ए-हयात
कर लिया अपने लब-ए-सादा को झूटा हम ने