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रास्ता कोई सफ़र कोई मसाफ़त कोई | शाही शायरी
rasta koi safar koi masafat koi

ग़ज़ल

रास्ता कोई सफ़र कोई मसाफ़त कोई

असअ'द बदायुनी

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रास्ता कोई सफ़र कोई मसाफ़त कोई
फिर ख़राबी की अता हो मुझे सूरत कोई

सारे दरिया हैं यहाँ मौज में अपनी अपनी
मिरे सहरा को नहीं इन से शिकायत कोई

जम गई धूल मुलाक़ात के आईनों पर
मुझ को उस की न उसे मेरी ज़रूरत कोई

मैं ने दुनिया को सदा दिल के बराबर समझा
काम आई न बुज़ुर्गों की नसीहत कोई

सुरमई शाम के हमराह परिंदों की क़तार
देखने वालों की आँखों को बशारत कोई

बुझती आँखों को किसी नूर के दरिया की तलाश
टूटती साँस को ज़ंजीर ज़रूरत कोई

तू ने हर नख़्ल में कुछ ज़ौक़-ए-नुमू रक्खा है
ऐ ख़ुदा मेरे पनपने की अलामत कोई