EN اردو
फूल अल्लाह ने बनाए हैं महकने के लिए | शाही शायरी
phul allah ne banae hain mahakne ke liye

ग़ज़ल

फूल अल्लाह ने बनाए हैं महकने के लिए

ऐश देहलवी

;

फूल अल्लाह ने बनाए हैं महकने के लिए
और बुलबुल को बनाया है चहकने के लिए

आतिश-ए-ग़म से बनाया है मिरे सीने में
दिल को अँगारे की मानिंद दहकने के लिए

बचे कम-बख़्त वो दिल क्यूँकि भला जिस दिल के
मुस्तइद हो निगह-ए-शोख़ उचकने के लिए

रिंद कहते हैं कि ख़ालिक़ ने किया है पैदा
रात दिन नासेह-ए-बेहूदा को बकने के लिए

रहम ऐ चश्म बनाया है कहीं क्या दिल को
क़तरा-ए-अश्क हो मिज़्गाँ से टपकने के लिए

शैख़ को रिंदों से कह दो कि नज़र में रक्खें
क्यूँकि अब ढूँडे है क़ाबू वो खिसकने के लिए

'ऐश' बतला तो बना है दिल-ए-हैराँ तेरा
मिस्ल-ए-आईना ये किस शक्ल के तकने के लिए